
लंदन (विशेष रिपोर्ट)। सोशल मीडिया पर हाल के दिनों में वायरल हुआ एक सनसनीखेज दावा — “ब्रिटेन से 40 लाख मुसलमान खदेड़े जा रहे हैं” — ने ब्रिटेन और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में सुकून भंग कर दिया है। कई चैनलों और पोस्ट ने इसे “LIVE” टैग के साथ पेड किया, जिससे यह ऐसा प्रतीत हुआ कि देश में कोई व्यवस्थित, सरकारी स्तर पर मुसलमानों के निष्कासन (mass expulsion) की प्रक्रिया चल रही है। परन्तु जाँच से स्पष्ट होता है कि वर्तमान में ऐसी कोई आधिकारिक नीति या सचमुच का “सामूहिक निर्वासन” नहीं चल रहा — लेकिन हालिया राजनीतिक माहौल और बड़े-पैमाने पर हुए एंटी-इमिग्रेशन प्रदर्शनों ने समुदाय में भय और असुरक्षा बढ़ा दी है।
क्या वायरल दावे सच हैं?
कोई सरकारी नोटिफिकेशन, संसद में प्रस्ताव, या गृह मंत्रालय की घोषणा नहीं मिली है जो यह संकेत दे कि ब्रिटेन सरकार 40 लाख मुसलमानों को देश से निकालने वाली है। ऐसे दावे ज्यादातर सोशल मीडिया क्लिप्स, पुराने वीडियो और असत्यापित आंकड़ों पर आधारित हैं। फुलफैक्ट और अन्य फैक्ट-चेक संस्थाओं ने पहले भी इसी तरह की वायरल पोस्ट्स को गलत बताया है।
हालाँकि, यह तथ्य भी सही है कि ब्रिटेन में मुस्लिम समुदाय में भय और असुरक्षा की भावना बढ़ी है — और कुछ सर्वे बताते हैं कि कई मुस्लिम नागरिकों ने देश छोड़ने पर विचार किया है। उदाहरण के लिए Tell MAMA/Survation के सर्वे में पाया गया कि औसतन हर तीन में से एक ब्रिटिश मुस्लिम ने देश छोड़ने की सोच रखी है। यह “विचार” और वास्तविक सरकारी निष्कासन—दोनों अलग बातें हैं।
हाल के राजनीतिक और सार्वजनिक घटनाक्रम — क्या गलतफहमी को हवा दी?
सितंबर की दूसरी-दोहाई में लंदन में हुए बड़े-पैमाने के एंटी-इमिग्रेशन/राइट-विंग प्रदर्शन ने माहौल और गरम कर दिया। इन रैलियों में भारी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया और कई जगह पुलिस से भिड़ंत हुई। ऐसे सार्वजनिक प्रदर्शन और कट्टर वक्तव्यों ने न केवल मुस्लिम समुदाय बल्कि अन्य अल्पसंख्यक समूहों में भी असुरक्षा की भावना पैदा की। प्रधानमंत्री और अन्य शीर्ष नेताओं ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार की पुष्टि की है पर हिंसा और नफरतपूर्ण भाषा की निंदा भी की गई है।
मीडिया की कुछ शाखाओं पर यह आरोप भी हैं कि उन्होंने मुसलमानों के संदर्भ में असंतुलित, भयावह और अतिरंजित कवरेज दी — जैसे कि hindu taaja khabar24 News पर मुस्लिमों से जुड़ी खबरों का असंतुलित प्रसार, जिसे सीएफएमएम जैसी संस्थाओं ने उठाया है। इस तरह की मीडिया प्रैक्टिस डर और भ्रांतियों को बढ़ाती है।
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समुदाय की प्रतिक्रिया और चिंताएँ
ब्रिटिश मुस्लिम समुदाय की प्रतिनिधि संस्थाओं ने नफरत-अपराध और भेदभाव पर चिंता जताई है। मुस्लिम काउंसिल और स्थानीय समुदाय-नेतृत्व ने सरकार और पुलिस से यह अपेक्षा जताई है कि वे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करें और अफवाहें फैलाने वालों के खिलाफ कदम उठाएँ। कई परिवारों ने यह भी कहा कि वे अपने बच्चों के भविष्य और रोज़गार की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं, और कुछ लोगों ने अस्थायी रूप से विदेश जाने के बारे में सोच रखा है — पर यह व्यक्तिगत निर्णय हैं, सामूहिक निर्वासन नहीं।
अफवाहों का सामाजिक और राजनैतिक असर
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अफवाहें सामाजिक तनाव बढ़ाती हैं और समुदायों के बीच अविश्वास को मजबूत करती हैं।
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झूठी ख़बरें विदेशी मंत्रियों और 57 इस्लामिक देशों में भी चिंता पैदा कर सकती हैं, मगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसी खबरों की कई बार स्वतः जाँच की जाती है और वे अक्सर खंडित होती हैं।
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अगर मीडिया और प्लेटफ़ॉर्म पर असत्य जानकारी को नियंत्रित न किया गया तो वास्तविक लोगों की सुरक्षा पर असर पड़ सकता है — भले ही वह दावा कितना भी अतिरंजित क्यों न हो
सरकार और सत्यापन: क्या कहा गया है?
ब्रिटेन की सरकार ने सार्वजनिक तौर पर कहा है कि किसी समुदाय को जबरन बाहर निकालने की कोई नीति नहीं है। शीर्ष नेताओं ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार की बात कही पर उकसावे और हिंसा की निंदा भी की। यही संदेश यह दर्शाता है कि आधिकारिक स्तर पर “सामूहिक निष्कासन” जैसी कोई योजना समर्थन में नहीं है।
निष्कर्ष — डर बनाम तथ्य
वायरल कैप्शन: “लो..ब्रिटेन से खदेड़े जाएंगे 40 लाख मुसलमान! हिले 57 इस्लामिक देश!” — यह शाब्दिक रूप से सच नहीं है। पर यह दावे समाज में भय का माहौल पैदा कर रहे हैं और कई मुस्लिम नागरिकों में असुरक्षा की भावना बढ़ा रहे हैं। सचेत पाठकों के लिए आवश्यक है कि वे खबरों का स्रोत जाँचें, फैक्ट-चेक पढ़ें और केवल प्रमाणिक मीडिया व आधिकारिक बयानों पर भरोसा करें। यदि सरकार और मीडिया मिलकर नफरत फैलाने वालों पर अंकुश नहीं लगाते हैं तो भविष्य में व्यक्तिगत-स्तर पर पलायन जैसी प्रवृत्तियाँ बढ़ सकती हैं — पर अभी की स्थिति को “सामूहिक निर्वासन” कहना तर्कसंगत नहीं होगा