
नई दिल्ली। 3 सितम्बर 2025 को आयोजित 56वीं जीएसटी परिषद बैठक में केंद्र सरकार और राज्यों के बीच एक बार फिर से जीएसटी 2.0 सुधार को लेकर गहन चर्चा हुई। बैठक में केंद्र ने जीएसटी दरों में कमी लाने और मौजूदा चार दरों (5%, 12%, 18% और 28%) को घटाकर दो दरों (5% और 18%) में समेटने का प्रस्ताव रखा। इसके अलावा महंगे और “सिन गुड्स” (जैसे तंबाकू, महंगी कारें, शराब इत्यादि) पर 40% की विशेष दर लगाने की भी बात सामने आई।
हालांकि इस उपभोक्ता-हितैषी सुधार का राज्यों ने स्वागत किया, लेकिन आठ विपक्षी-शासित राज्यों – कर्नाटक, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, पंजाब, केरल, तमिलनाडु, सिक्किम और हिमाचल प्रदेश – ने एकजुट होकर मांग की कि दरों में कटौती से होने वाली राजस्व हानि की प्रत्यक्ष भरपाई केंद्र सरकार सुनिश्चित करे।
कर्नाटक की अगुवाई में उठी मांग
बैठक के दौरान सबसे मुखर रुख कर्नाटक के वित्त मंत्री कृष्णा बायरे गौड़ा ने अपनाया। उन्होंने कहा कि दरों में कटौती से राज्यों के राजस्व पर बड़ा असर पड़ सकता है, इसलिए एक अतिरिक्त उपकर (cess) तंत्र बनाया जाए, जिसे लक्ज़री और पाप वस्तुओं (sin goods) पर लगाया जा सके। यह अतिरिक्त टैक्स राज्यों को आर्थिक सुरक्षा देने का काम करेगा।
गौड़ा ने परिषद से यह भी आग्रह किया कि दर कटौती से होने वाले अनुमानित घाटे की पारदर्शी गणना सार्वजनिक की जाए। उन्होंने साफ शब्दों में कहा – “हम बिना आंकड़ों के अंधेरे में सुधार नहीं कर सकते। यदि 28% और 12% वाले सामान को कम दरों में लाया गया तो इसका सीधा असर हमारे कर संग्रह पर पड़ेगा। जब तक स्पष्ट गणना और राजस्व सुरक्षा की गारंटी नहीं होगी, हमारे सामाजिक कल्याण कार्यक्रम और विकास योजनाएँ प्रभावित होंगी।”
सीएनबीसी-टीवी18 की एक रिपोर्ट में भी बताया गया कि कर्नाटक लगातार महामारी के समय से ही वित्तीय सुरक्षा की गारंटी मांगता आ रहा है। जून 2022 में जब महामारी-काल की जीएसटी क्षतिपूर्ति व्यवस्था समाप्त हुई, तब से यह राज्य केंद्र से भरोसेमंद सुरक्षा कवच की मांग करता रहा है।
विपक्षी राज्यों की साझा चिंता
कर्नाटक के अलावा तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, पंजाब, केरल और तमिलनाडु ने भी यह तर्क दिया कि बिना क्षतिपूर्ति व्यवस्था के नए ढांचे में शामिल होना राज्यों के लिए कठिन होगा।
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पश्चिम बंगाल ने कहा कि यदि केंद्र राज्यों को भरोसा नहीं देगा तो छोटे और गरीब राज्यों की वित्तीय स्थिति डगमगा जाएगी।
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तेलंगाना ने दावा किया कि सिर्फ उसके राज्य को ही सालाना हजारों करोड़ का घाटा उठाना पड़ेगा।
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पंजाब और केरल ने इस सुधार को “राज्यों के हिस्से पर चोट” बताया और कहा कि राजस्व सुरक्षा के बिना यह कदम केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव ला सकता है।
केंद्र का रुख
केंद्र सरकार का मानना है कि जीएसटी 2.0 उपभोक्ताओं को बड़ी राहत देगा। कम दरों के चलते अनुपालन (compliance) बेहतर होगा और बाजार में खपत बढ़ेगी। केंद्र का तर्क है कि खपत बढ़ने से लंबी अवधि में राज्यों को नुकसान नहीं होगा, बल्कि राजस्व संग्रह स्वतः बढ़ जाएगा।
हालांकि, अब तक केंद्र ने कोई ठोस क्षतिपूर्ति फॉर्मूला पेश नहीं किया है। केवल इतना भरोसा दिलाया गया है कि उच्च कर स्लैब वाले सामानों पर बढ़ी हुई दरें और बेहतर अनुपालन राज्यों को राहत देंगी।
विवाद की जड़ – वित्तीय संघवाद (Fiscal Federalism)
यह पूरा विवाद दरअसल वित्तीय संघवाद के इर्द-गिर्द घूमता है। जब 2017 में जीएसटी लागू हुआ था, तब राज्यों ने अपने कर अधिकार छोड़कर इसे स्वीकार किया। बदले में केंद्र ने उन्हें 5 साल तक राजस्व हानि की भरपाई का आश्वासन दिया था।
लेकिन यह व्यवस्था जून 2022 में समाप्त हो गई। महामारी के दौरान यह विषय और संवेदनशील हो गया, क्योंकि कई राज्यों की आय पर गहरा असर पड़ा। अब जब नए सुधार की बात हो रही है, तो विपक्षी राज्य चाहते हैं कि कोई स्थायी व्यवस्था बनाई जाए जिससे उन्हें घाटा न उठाना पड़े।
आगे का रास्ता
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर केंद्र और राज्यों के बीच सहमति नहीं बन पाती तो जीएसटी 2.0 का रोलआउट टल सकता है। केंद्र चाहता है कि यह सुधार दीवाली 2025 से पहले लागू हो जाए। लेकिन विपक्षी राज्यों ने संकेत दिया है कि जब तक उन्हें भरोसा नहीं मिलेगा, वे इस प्रस्ताव को समर्थन नहीं देंगे।
वित्तीय विशेषज्ञ यह भी सुझाव दे रहे हैं कि केंद्र एक नया उपकर कोष (Compensation Fund) बनाए, जिसमें लक्ज़री और सिन गुड्स पर 40% टैक्स से होने वाली आय जमा हो और राज्यों को उसमें से हिस्सा दिया जाए। इससे केंद्र का राजस्व भी सुरक्षित रहेगा और राज्यों को भी विश्वास मिलेगा।