
दुनिया की सबसे तेज़ और अत्याधुनिक ट्रेनों की बात होती है तो जापान का नाम सबसे पहले आता है। जापान ने एक बार फिर अपनी तकनीकी क्षमता का लोहा मनवाया है। हाल ही में जापान की सुपरकंडक्टिंग मैग्लेव ट्रेन (Superconducting Maglev Train) ने परीक्षण के दौरान 310 मील प्रति घंटा (लगभग 500 किलोमीटर प्रति घंटा) की रफ्तार से पटरी पर नहीं बल्कि हवा में तैरते हुए सबको चौंका दिया। इस दृश्य को देखकर पत्रकार और यात्रियों ने कहा कि यह “भविष्य की झलक” है।https://hindutaajakhabar24.com/wp-admin/post-new.php
कैसे काम करती है मैग्लेव ट्रेन?
मैग्लेव का पूरा नाम है Magnetic Levitation यानी चुंबकीय उत्थापन। पारंपरिक ट्रेनें पटरी पर चलती हैं और पहियों के सहारे गति पकड़ती हैं। लेकिन मैग्लेव तकनीक में ट्रेन पटरी से कुछ सेंटीमीटर ऊपर हवा में तैरती है। यह चुंबकीय शक्ति (Magnets) की वजह से संभव होता है।
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घर्षण का अंत – चूँकि ट्रेन और ट्रैक के बीच कोई संपर्क नहीं होता, घर्षण शून्य के बराबर हो जाता है।
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अत्यधिक गति – बिना घर्षण के ट्रेन बहुत तेज़ दौड़ सकती है, जिससे 500 km/h से भी ऊपर की गति हासिल करना आसान हो जाता है।
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शोर और झटके कम – यात्रियों को सफ़र के दौरान अधिक आराम और कम शोर का अनुभव मिलता है।
310 mph की स्पीड पर धड़कनें तेज़
परीक्षण के दौरान जब ट्रेन 310 mph की स्पीड से गुज़री तो कैमरे और माइक्रोफ़ोन इसे कैद करने में मानो पीछे रह गए। कुछ पत्रकारों ने कहा कि “पलक झपकते ही ट्रेन गायब हो गई।”
यह सिर्फ़ गति का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि यह भी दिखाता है कि भविष्य में लंबी दूरी की यात्रा कितनी आसान हो जाएगी।
चुओ शिनकान्सेन परियोजना
यह मैग्लेव ट्रेन परियोजना जापान की चुओ शिनकान्सेन (Chūō Shinkansen) योजना का हिस्सा है।
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इस परियोजना का लक्ष्य है टोक्यो और नागोया के बीच सुपरफ़ास्ट यात्रा।
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फिलहाल शिंकान्सेन बुलेट ट्रेनें इस रूट पर लगभग 1 घंटे 40 मिनट का समय लेती हैं।
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मैग्लेव ट्रेन यह दूरी सिर्फ़ 40 मिनट में तय कर देगी।
योजना के दूसरे चरण में इस रूट को ओसाका तक बढ़ाया जाएगा, जिससे जापान के प्रमुख शहरों के बीच यात्रा बेहद तेज़ और सुविधाजनक हो जाएगी।
शुरुआत और देरी
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शुरुआत में यह सेवा 2027 से शुरू होनी थी।
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लेकिन ज़मीन अधिग्रहण, पर्यावरणीय स्वीकृति और निर्माण कार्य में देरी के कारण इसे अब 2034 तक टाल दिया गया है।
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जापान की रेल कंपनी JR Central (Central Japan Railway Company) इस परियोजना को बना रही है और अब भी इसे समय पर पूरा करने की कोशिश कर रही है।
विश्व रिकॉर्ड का मालिक
जापान की मैग्लेव ट्रेन पहले ही दुनिया का रिकॉर्ड अपने नाम कर चुकी है।
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2015 में इस ट्रेन ने परीक्षण रन के दौरान 603 किलोमीटर प्रति घंटा (375 mph) की रफ्तार हासिल कर ली थी।
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यह आज तक की सबसे तेज़ मानवयुक्त ट्रेन का रिकॉर्ड है।
यह दिखाता है कि जापान तकनीक और गति दोनों में दुनिया से बहुत आगे है।
आर्थिक और सामाजिक महत्व
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समय की बचत – जब टोक्यो से नागोया सिर्फ़ 40 मिनट और टोक्यो से ओसाका 67 मिनट में पहुँचा जा सकेगा, तो व्यापार और पर्यटन दोनों को बड़ा लाभ मिलेगा।
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पर्यावरण के अनुकूल – चूँकि ट्रेन इलेक्ट्रिक शक्ति और मैग्नेट्स पर आधारित है, इसलिए यह हवाई जहाजों की तुलना में बहुत कम प्रदूषण फैलाती है।
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यात्री अनुभव – सफर इतना स्मूद होगा कि यात्रियों को लगेगा ही नहीं कि वे 500 km/h की रफ्तार से दौड़ रहे हैं।
मैग्लेव बनाम हवाई जहाज
अक्सर यह सवाल उठता है कि इतनी तेज़ ट्रेनों की ज़रूरत क्यों है जब हवाई जहाज मौजूद हैं।
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हवाई जहाज की चेक-इन प्रक्रिया और सुरक्षा जांच में घंटों लगते हैं, जबकि ट्रेन में यात्री सीधे बैठकर यात्रा कर सकते हैं।
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ट्रेनें शहर के बीचों-बीच से शुरू होती हैं, जबकि एयरपोर्ट आमतौर पर शहर से दूर होते हैं।
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मैग्लेव ट्रेनों की समय की पाबंदी (On-time performance) हवाई जहाजों की तुलना में कहीं बेहतर होती है।
भविष्य की तस्वीर
अगर सबकुछ योजना के अनुसार चला तो अगले दशक में जापान का यह ट्रेन नेटवर्क दुनिया के लिए एक मॉडल बन जाएगा। चीन और यूरोप पहले ही इस तकनीक को अपनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। भारत में भी मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना चल रही है, लेकिन वह अभी पारंपरिक शिंकान्सेन पर आधारित है, मैग्लेव पर नहीं।
जापान ने एक बार फिर दिखा दिया है कि वह तकनीक और नवाचार में दुनिया से आगे है। जब यह ट्रेन 2034 में यात्रियों के लिए खुलेगी, तो यह न केवल जापान की, बल्कि पूरी दुनिया की यात्रा संस्कृति को बदल देगी।https://hindutaajakhabar24.com/जापान-की-मैग्लेव-ट्रेन-310-मी/